सामाजिक सुरक्षा सम्मेलन में मुस्लिम अल्पसंख्यकों को भी एस०सी०, एस०टी० एक्ट 1989 में शामिल करने की माँग पर ज़ोर
अपने अध्यक्षीय विचार रखते हुए उन्होंने कहा कि मुसलमान की बड़ी आबादी इस समय अपनी जानी-माली सुरक्षा के लिए बहुत चिंतित रहती है। शैक्षिक एवं आर्थिक बदहालियों के बावजूद सुरक्षा ही सबसे बड़ी समस्या रही है और इस विषय पर इस समाज ने इन 75 वर्षों में वोट देने का काम किया है। पालिटिकल पार्टियों ने अपने शासन कालों में राष्ट्रपति, गवर्नर, मंत्री पद जैसे बड़े पदों पर मुसलमानों को जगह दी है लेकिन आम मुसलमानों ने हमेशा उस पार्टी को पावर में रखने की कोशिश की है जो उसे सुरक्षा देने में चम्पयन लगा । आज के बदलते राजनीतिक माहौल में उसे कानूनी सुरक्षा की आवश्यकता है, अब केवल जुबानी सुरक्षा से काम नहीं चलने वाला है। उन्होंने कहा कि मुसलमानों की बड़ी आबादी यही चाहती है कि उसे भी एस०सी०/ एस०टी० एक्ट (1989) में शामिल किया जाए और जो पार्टी इस मांग को पूरी करेगा उसे ही ये आबादी वोट देने का काम करेगी।
मोर्चा के महामंत्री शब्बीर मंसूरी ने कहा कि मुसलमानों की बड़ी आबादी आज देश में महासेवक है। पंकचर बनाना, कचड़ा बीनना, चिकन मटन बनाना, साग-सब्जी बेचना, सिलाई बुनाई, धुनाई, मजूदरी आदि इनकी प्रमुख सेवायें हैं। इस सम्बन्ध में सभी भारतीय एक दूसरे पर आश्रित हैं जो सादियों से चला आ रहा है। सम्प्रदायिक तनाव या दंगे होने पर इस सिलसिले पर ब्रेक लगता है और समस्त देशवासी इसके भुक्त-भोगी हो जाते हैं।
मोर्चा के उपाध्यक्ष अब्दुल हकीम हवारी ने कहा कि अत्याचार निवारण एक्ट 1989 बनने से सामाजिक अत्याचार' (Social Voilence) पर बहुत रोक लगी है। इसी कानून में अगर मुसलमानों को शामिल कर दया जाए तो फिर सम्प्रदायिक अत्याचार ( Communal Voilance) पर भी रोक लग जाएगी, जो देशहित में भी आवश्यक है।
इस अवसर पर प्रोफ़ेसर रब्बानी (इलाहबाद ),अतीकुर रहमान एडवोकेट ,डॉ ऍम यु दुआ ,चतर सिंह रछौया ,इंजीनियर डी सी कपिल,सग़ीर अब्बासी ,दिलशाद अली ने भी अपनी बात राखी और सरकार से क़ानूनी सुरक्षा की मांग की।
कांफ्रेंस में यही मांग रही कि केन्द्र सरकार एक अध्यादेश लाकर "अत्याचार निवारण एक्ट 1989 में दलितों एवं आदिवासियों के साथ मुसलमानों को भी किसी रूप में शामिल कर दे। ये देशहित एवं समाजहित में बहुत जरूरी है। ये मांग प्रधानमंत्री को राजनीतिक शक्ति देने में बड़ा रौल अदा कर सकती है।
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