फिक्की के मुशायरे में राष्ट्रीय एकता और अखंडता पर दिया विशेष बल

 


पुस्तक तज़किरा औलिया-ए-खांदेश पर की गई चर्चा 

नई दिल्ली। फेस इस्लामिक कल्चरल कम्यूनिटी इंटीग्रेशन (फिक्की) के बैनर तले शकील अंसारी द्वारा लिखित पुस्तक तज़किरा औलिया-ए-खांदेश पर चर्चा हेतु एक गोष्ठी का आयोजन आराम पार्क स्थित फे़स स्टूडियों में किया गया। फ़िक्की के चेयरमैन डॉ० मुश्ताक़ अंसारी की देखरेख में आयोजित इस गोष्ठी की अध्यक्षता दिल्ली स्टेट मोमिन कांफ्रेस के अध्यक्ष हाजी मौ0 इमरान अंसारी ने की और केंद्रीय वक़्फ़ कौंसिल भारत सरकार के सदस्य रईस खान पठान मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहे। इसके अलावा ऑल इंडिया मोमिन कांफ्रेस के महासचिव अब्दुल रशीद अंसारी, हाफ़िज़ सलीम अहमद, मरकजी मोमिन कांफ्रेंस के राष्ट्रीय महासचिव व शिक्षाविद मोईन अख्तर अंसारी, सर्वोकॉन के सी-एम-डी- हाजी कमरूद्दीन सिद्दीकी, मशहूर शायरा अना देहलवी, सीनियर जर्नालिस्ट मारूफ रज़ा, मोमिन कांफ्रेस के प्रदेश सचिव हाजी रियाजुद्दीन अंसारी, शिक्षाविद् डॉ० मौ० इलयास सैफी आदि ने विशिष्ठ अतिथि की हैसियत से शिरकत की। इस अवसर पर आयोजित मुशायरे में अना देहलवी, अमीर अमरोहवी, जिगर नौगानवीं, सरफराज अहमद फराज़, फरहतुल्लाह फरहत, ज़फ़र कानपुरी, आरिफ देहलवी व सुषमा कक्कड़ आदि काबिल शायरों ने अपने कलाम पेश किए। मंच का संचालन मशहूर शायर दानिश अय्यूबी द्वारा किया गया। 
इस मौके पर अपने ख्यालात का इज़हार करते हुए रईस खान पठान ने कहा कि निःसंदेह हिन्दी और उर्दू दो बहनें हैं लेकिन उर्दू के साथ नाइंसाफी हो रही है, जिसके लिए हम सब जिम्मेदार हैं, हम अपने बच्चों को उर्दू सिखाने में लापरवाही करते हैं। उन्होंने कहा उर्दू सरकारी तौर पर सैकेण्ड लेंगवेज है तो हमें सरकारी विभागों के पत्रचार में उर्दू का इस्तेमाल करना चाहिए। हमें अपने अधिकार को हासिल करने के लिए संघर्ष करना चाहिए। 

हाजी मौ० इमरान अंसारी ने कहा कि लम्बे रिसर्च के बाद पब्लिश की गई इस किताब में सूफी संतों व औलियाओं की जीवन शैली को संग्रहित किया गया है, जिससे समाज में आपसी भाईचारे को बल मिलेगा, क्योंकि सूफी संतों ने हमेशा एकता के संदेश को जन मानस तक पहुंचाने का प्रयास किया है। उन्होंने कहा देश के मौजूदा हालात में जहां फिरकापरस्त ताकतें मनमानी कर रही हैं ऐसी स्थिति में यह किताब आपसी सौहार्द को कायम करने में सहायक साबित होगी। 

विश्व विख्यात शायरा अना देहलवी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उर्दू जुबान को मुसलमानों की जुबान समझने वाले लोग गुमराही के अंधेरे में हैं क्योंकि उर्दू की रहनुमाई गैर मुस्लिम भी कर रहे हैं, इसलिए उर्दू कभी नही मर सकती। मोईन अख्तर अंसारी ने देश के वर्तमान हालात पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि फिरकापरस्तों के कारण जिस तरह के हालात देश के बन रहे हैं वह देश के भविष्य के लिए उचित नही हैं। उन्होंने कहा हम सबकी जिम्मेदारी बनती है कि उर्दू के साथ साथ राष्ट्रीय एकता को भी बचाने के लिए आपसी सौहार्द को कायम किया जाए। 

तज़किरा औलिया-ए-खांदेश के लेखक शकील अंसारी ने पुस्तक के सम्बंध में जानकारी देते हुए बताया कि करीब 7 वर्ष के रिसर्च के बाद मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र के दर्जन भर से अधिक ज़िलों के सूफी, संतो, औलिया इकराम व बुजुर्गों की जीवनी का संग्रह इस पुस्तक में किया गया है। उन्होंने कहा इस किताब को मज़रे आम पर लाने के पीछे मेरा मकसद यही है कि सूफी संतों के संदेश को जन-जन पहुंचाकर एकता और भाईचारे को मजबूती प्रदान की जा सके। 




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