फेडरेशन ऑफ़ पेपर ट्रेडर्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया ने कागज़ के उपयोग पर दिया विशेष बल

एफपीटीए का दिल्ली में संपन्न हुआ 3 दिवसीय  62 वा राष्ट्रीय अधिवेशन

 नई दिल्ली। देश के पेपर (कागज) व्यापारियों के सबसे बड़े संगठन फेडरेशन ऑफ पेपर ट्रेडर्स एसोसिएशन ऑफ़ इण्डिया (एफपीटीए) का पूर्वी  दिल्ली स्थित दा लीला एम्बिएंस कन्वेंशन होटल  में 3 दिन तक चलने वाले 62 वें राष्ट्रीय अधिवेशन के शुरू होने से एक दिन पहले फेडरेशन के नेताओं द्वारा नई दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में प्रेस कांफ्रेंस कर मीडिया को बताया कि राष्ट्र के निर्माण में कागज के व्यापारियों का क्या योगदान है । देश की राजधानी में हो रहे फेडरेशन के राष्ट्रीय अधिवेशन की मेजबानी कर रही पेपर मर्चेंट्स एसोसिएशन ( पीएमए) दिल्ली द्वारा बुलाई गई प्रेस कांफ्रेंस में एफपीटीए के अध्यक्ष असीम बोर्डिया, महामंत्री भवेश गाला, एफपीटीए के नॉमिनेटिड अध्यक्ष दिलीप बिंदल, पीएमए दिल्ली के अध्यक्ष रमेश गर्ग, महामंत्री अजय गुप्ता, अधिवेशन की रिसेप्शन कमेटी के चेयरमैन विनय जैन, अधिवेशन के प्रेस एण्ड पब्लिसिटी कन्वीनर राजीव शर्मा मौजूद रहे। 


        इस अवसर पर एफपीटीए के वर्तमान अध्यक्ष असीम बोर्डिया ने बताया कि फेडरेशन बड़े पैमाने पर कागज के उपयोग को बढ़ावा देने  के साथ साथ उन मिथकों को भी दूर करने का प्रयास कर रही है कि कागज के उपयोग से हरित आवरण कम हो जाता है क्योंकि कागज सिर्फ पेड़ काट कर ही नही बल्कि भारत में इसका निर्माण पेड़ों से ज्यादा अपशिष्ट कागज के पुनर्चक्रण और कृषि अपशिष्ट के अवशेषों जैसे अन्य स्रोतों से किया जाता है । 

     2022 की भारत राज्य वन रिपोर्ट के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में वन क्षेत्र में वृ‌द्धि हुई है । यह भी कटु सत्य है कि कागज प्रकृति के लिए किसी भी तरीके से हानिकारक नही है । ज्ञात रहे यदि एक पेड़ को काटा जाता है तो कागज मिलें योजनाबद्ध तरीके से लुगदी के उपयोग के लिए एक के बदले कई कई पेड़ लगाती भी हैं।

    एफपीटीए के निर्णय का पालन करते हुए कागज के व्यापारी देश भर में 1 अगस्त को "पेपर दिवस" के रूप में मनाते हैं और इस दिन वो उन क्षेत्रों में वृक्षारोपण करते हैं जहां कभी कागज के लिए पेड़ों को काटा ही नही जाता। ज्ञात रहे एफपीटीए कागज उद्योग से जुड़े व्यापारियों को वैश्विक जानकारी और व्यापार के अवसरों के लिए अंतरराष्ट्रीय दौरों के लिए मंच भी प्रदान करता है। 

        यह व्यापारियों के अधिकारों, हितों की सुरक्षा और मिलों और व्यापारियों के रिश्तों की बेहतरी के लिए मिल्स एसोसिएशनों के साथ-साथ पेपर कन्वर्टर्स और प्रिंटर्स के साथ भी सभी स्तरों पर बातचीत और समन्वय करता है। एफपीटीए जर्मनी, थाईलैंड, इंडोनेशिया, कोरिया, वियतनाम, जापान और चीन जैसे अंतरराष्ट्रीय गंतव्यों के लिए व्यापार प्रतिनिधिमंडलों का भी संचालन करता है। 

एफपीटए के महामंत्री भवेश गाला ने बताया कि फेडरेशन व्यापारियों के अधिकारों, हितों की सुरक्षा और मिलों और व्यापारियों के रिश्तों की बेहतरी के लिए मिल्स एसोसिएशनों के साथ-साथ पेपर कन्वर्टर्स और प्रिंटर्स के साथ भी सभी स्तरों पर बातचीत और समन्वय करता है। एफपीटीए जर्मनी, थाईलैंड, इंडोनेशिया, कोरिया, वियतनाम, जापान और चीन जैसे अंतरराष्ट्रीय गंतव्यों हेतू व्यापार प्रतिनिधि मंडलों का भी संचालन करता है। 

    एफपीटीए के नॉमिनेटिड अध्यक्ष दिलीप बिंदल ने प्रेस कांफ्रेंस में फेडरेशन के राष्ट्रीय अधिवेशन के संदर्भ में बताया कि इसमें देश भर के 500 से अधिक सदस्यों के भाग लेने की संभावना है । ज्ञात रहे फेडरेशन देश के 30 राज्यों में क्रियाशील है और इसमें पेपर व्यापारियों की 36 से अधिक ट्रेडर्स एसोसिएशनों का समावेश है । 8000 से अधिक बड़े पेपर ट्रेडर्स देश में इस व्यापार को गतिमान किए हुए हैं 

     दिलीप बिंदल ने राष्ट्र के निर्माण में कागज व्यापारियों की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए बताया कि सरकार के बाद ये वो वर्ग है जो देश करोड़ों लोगों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रुप से रोजगार मुहैया कराने के साथ सरकार के स्वच्छ भारत मिशन को भी सफल बनाने की दिशा में अहम रोल अदा कर रहा है । इतना ही नही पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में भी इनकी सार्थक पहल को नकारा नहीं जा सकता । ज्ञात रहे यह वर्ग कूड़ा बीनने वाले से लेकर बडी बड़ी डिग्रियां हासिल करने वालों तक को रोजगार मुहैया कराता है। उन्होंने कागज निर्माण के संदर्भ में पर्यावरण को लेकर भ्रांतियां फैलाने वाले लोगों के ज्ञान चक्षु खोलने के दृष्टिगत बताया कि कागज की पर्यावरण को नुकसान नही पहुंचाया क्योंकि इसकी एक सीमित लाइफ होती है । ज्ञात रहे देश में 75 प्रतिशत कागज रिसाइकलिंग प्रक्रिया से बनाया जाता है तो 7 प्रतिशत बगास ( कृषि वेस्ट ) से बनाया जाता है । 

                  जबकि 18 प्रतिशत कागज लकड़ी से बनाया जाता है इसमें भी 6 प्रतिशत कागज मैकेनिकल पल्प इंपोर्ट किया जाता है और 12 प्रतिशत के लिए भारत में जो पेड़ कागज निर्माताओं द्वारा काटे जाते उनकी खेती भी वो स्वम करते है । इस प्रक्रिया से स्पष्ट होता है कि कागज निर्माण किसी भी दृष्टिकोण से पर्यावरण के लिए हानिकारक नही ।देश में सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन लगाने वाली भारत सरकार भी यही संदेश देती है कि  प्लास्टिक की जगह पेपर बैग का इस्तेमाल करें ।

                      एफपीटीए के नॉमिनेटिड अध्यक्ष ने भविष्य की योजना पर प्रकाश डालते हुए बताया कि हमारा प्रयास रहेगा कि युवा पीढ़ी को ज्यादा से ज्यादा इस ट्रेड में लाया जाए , इस ट्रेड में अपना अंशदान कर रहे सह कर्मियों का उत्थान हो , सरकार से एक्सपोर्ट पॉलिसी को सुलभ कराने का प्रयास किया जायेगा क्योंकि इस पहल से देश की जीडीपी और एम्प्लॉयमेंट में आशा से अधिक इजाफा हो सकता है । इस संदर्भ में फेडरेशन का एक प्रतिनिधिमंडल बहुत जल्द मिनिस्टर ऑफ कॉमर्स से मिलेगा ।

                कागज व्यापारियों के समक्ष हर समय मुंह बाए खड़ी रहने वाली समस्याओं पर ध्यान आकर्षित करते हुए दिलीप बिंदल ने बताया कि बड़े ही खेद का विषय है कि जो व्यापारी सरकार के बाद देश के आवाम के साथ हर समय , हर दौर में सबसे आगे खड़ा मिलता है वही अनेकों समस्याओं से जूझने को मजबूर रहता है ।

     ज्ञात रहे वर्तमान के बदलते परिवेश में सरकार की नित रोज बदलती नीतियों के कारण कागज व्यापारी जीएसटी, एमएसएमई से जुड़ी पेमेंट रिकवरी , मार्जन  जैसी अनेकों समस्याओं से जूझने के साथ साथ व्यापार की सिक्योरिटी और स्योरिटी के अभाव में कार्य करने को मजबूर है । सब जानते हैं कि ट्रेडर्स उत्पादक और उपभोक्ता के बीच का सबसे अहम सेतू है लेकिन इसके बावजूद सरकार दोनो वर्ग के बीच भेदभाव रखती है । उदाहरण स्वरूप बड़ी कंपनियों का इंकमटेक्स स्लैब यदि 25 प्रतिशत है तो ट्रेडर्स का 30 प्रतिशत है । यह भेदभाव खत्म होना चाहिए 

          कैट के चेयरमैन राजकुमार बिंदल ने इस मौके पर बताया कि कैट की कोशिशों के बाद पेपर व्यापारियों का रजिस्ट्रेशन तो होने लगा है लेकिन उन्हें एमएसएमई की सुविधाएं कडी मशक्कत के बाद भी हासिल नही हो पा रही । यहां भी ट्रेडर्स के साथ भेदभाव हो रहा है । एमएसएमई के तहत जो सुविधाएं इंडस्ट्रिलिस्ट ( उत्पादक ) को मिलती हैं वो ट्रेडर्स को नही मिल पाती ।

             *** अधिवेशन के प्रेस एण्ड पब्लिसिटी कन्वीनर राजीव शर्मा ने इस मौके पर कहा कि आजकल कागज निर्माताओं को दिल्ली के विधायक मदन लाल जैसे कुछ जिम्मेदार लोगों द्वारा पर्यावरण की आड़ लेकर जो बदनाम करने का प्रयास किया जा रहा है वह पूर्णतः  निंदनीय है । ज्ञात रहे इन विधायक महोदय ने विधानसभा में 15 दिसंबर को कहा कि कागज निर्माता पेड़ काट काट कर पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं इनके खिलाफ सरकार को एक्शन लेना चाहिए । 

                     राजीव शर्मा ने विधायक महोदय के कथन की कड़ी भर्त्सना करते हुए बताया कि कागज उद्योग से जुड़े लोग पर्यावरण संरक्षण के प्रति कितने सजग रहते हैं उसे शब्दों में बयां नही किया जा सकता । कटु सत्य है कि हम लोग पर्यावरण संरक्षण के साथ साथ सरकार के स्वच्छ भारत मिशन को भी सफल बनाने में अहम भूमिका अदा करते हैं । इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि देश में पेड़ों को कम से कम काटने के दृष्टिगत आज भी 80 प्रतिशत कागज ( पेपर ) का उत्पादन रीसाइक्लिंग प्रणाली के तहत किया जा रहा है 

                   ज्ञात रहे कागज उद्योग से देश के 42 लाख से अधिक लोगों का भविष्य सीधा सीधा जुड़ा हुआ है । राजीव शर्मा ने अखबार ( कागज ) की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए यह भी बताया कि मोबाइल क्रांति के दौर में पूरे विश्व में भले ही सोशल व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का प्रचलन बढ़ रहा है लेकिन विश्वसनीयता आज भी अखबारो पर ही टिकी रहती है।

                   प्रमाणिक तथ्य है कि घर घर में मोबाइल के बढ़ते उपयोग के बाद (खासकर बच्चों में) से बढ़ रहे डिप्रेशन के मामलों की गंभीरता को देखते हुए सरकारों से लेकर आमजन मानस तक एक बार फिर से पेपर (कागज) अखबार आदि की ओर रुख कर रहे हैं । 

              इंग्लैड जैसे विकसित देशों में भी अब बसों में सरकार द्वारा प्रत्येक पैसेंजर को फ्री में अखबार, मैगजीन जैसी चीजें उपलब्ध कराई जा रही है । इसलिए हम यह बात गर्व से कह सकते हैं कि कागज की विश्वसनीयता को कभी कम नही किया जा सकता।

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