नए भारत की नई क्रोनोलॉजी

यह नया भारत है। इस नए भारत में मुसलमानों के ख़िलाफ अपराध के तरीक़े भी नए हैं। पहले कोई 'धार्मिक यात्रा' मुस्लिम मौहल्लों से निकालने का रूट तैयार किया जाता है, फिर उस में बरंगदल जैसे संगठनों से प्रशिक्षण प्राप्त 'धर्म रक्षक' घुसा दिए जाते हैं। यात्रा शूरू होती है। ज़ोर-ज़ोर से डीजे बजता है और उस पर भड़काऊ नारेबाज़ी होती है, यात्रा मुस्लिम मौहल्लों में पहुंचती है, भड़काऊ नारेबाज़ी आपत्तिजनक 'गानों' के शोर से मुसलमानों को उकसाने का षडयंत्र होता है। विवाद होता है, फिर वह विवाद झड़प में तब्दील होकर बात पत्थरबाज़ी तक पहुंचता है। उसके बाद कर्फ्यू ! 'धार्मिक यात्री' सकुशल अपने घर पहुंच जाते हैं। 

अब यहां से मुसलमानों के ख़िलाफ प्रशासनिक अपराध का सिलसिला शुरू होता है। जहां विवाद हुआ उसके आस-पास मुख्य मार्ग पर बने ठीक-ठाक घरों को पहले ही चिन्हित कर लिया जाता है। फिर उस घर के किसी सदस्य पर उपद्रव करने या उपद्रवियों को 'शरण' देने का आरोप लगाकर  जेल भेजा जाता है, और उस मकान को 'अवैध' बताकर उस पर बुलडोज़र चला दिया जाता है। इस तरह तलवार लहराते हुए भड़काऊ नारेबाज़ी करते 'धर्म रक्षक' दंगों के आरोप में मुकदमों में फंसने से बचे रहते हैं, और 'दूसरे' संप्रदाय के लोग उपद्रव के आरोप में मुक़दमों में जेल जाते हैं, उनकी मेहनत की कमाई का बड़ा हिस्सा पुलिस, कचहरी वकीलों की फीस में खर्च होता है, और यदि मकान पर बुलडोज़र चल गया है तो फिर ज़िंदगी को पटरी पर लाने का सवाल उनके सामने आकर खड़ा हो जाता है। इस तरह 'नए भारत' का नारा देने वाले दल की सरकार द्वारा प्रशासन के हाथ में थमाई गई लाठी से 'सांप' भी मर रहा है और 'लाठी' भी 'सलामत' है। बुलडोज़र का 'न्याय' इस नए भारत में मुसलमानों को आतंकित करने का नया तरीक़ा है। अभी तक 'धार्मिक यात्राओं' के दौरान जितने भी उपद्रव हुए हैं, उनमें गिरफ्तारियों से लेकर बुलडोज़र तक की कार्रावाई 'दूसरे' संप्रदाय के लोगों पर ही हुई है। क्या ऐसा संभव है कि सबकुछ एकतरफा ही हो? 

ताजा मामला मध्य प्रदेश के शाजापुर का है, जहां आठ जनवरी को धार्मिक यात्रा निकाली गई थी, आरोप है कि जब यात्रा मस्जिद के पास पहुंची तो उस पर पथराव हो गया था। इसके बाद भाजपा विधायक अरुण भीमावद अपने समर्थकों के साथ पुलिस थाने के सामने इकट्ठा हुए और भाषण देते हुए बुलडोजर चलाने का भरोसा दिलाया, फिर क्या था। सत्ताधारी दल का विधायक बुलडोज़र चलवाने का भरोसा दिलाए प्रशासन बुलडोज़र ना चलाए, यह भला कैसे संभव है ! प्रशासन ने विधायक के 'आदेश' को अमल में लाते हुए रहीम पटेल के घर को 'अवैध' बताकर गिरा दिया। विधायक भी खुश, उन्हें चुनने वाली जनता भी खुश और 'धर्म रक्षक' भी खुश ! विधायक को कौन बताए कि वो विधानसभा क्षेत्र की समस्त जनता का विधायक है, प्रशासन को संविधान का पाठ कौन पढ़ाए ?अधिकारियों को कौन याद दिलाए कि उन्होने पदभार संभालने से पहले अनुराग एंव द्वेष के बिना कार्य करने की शपथ भी ली हुई है! जब 'दूसरे' समाज को आतंकित करना ही तरक्की की सीढ़ी बन जाए तब कैसी शपथ और कैसा संविधान ! मालूम नहीं Supreme Court of India कब समझेगा बुलडोज़र 'रहीम' के घर पर ज़रूर चल रहा है लेकिन बुनियाद अदालत की कमज़ोर हो रही है।

वसीम अकरम त्यागी

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