ग़ैर मुस्लिमों के साथ इस्लामी अख़लाक़ पेश करें और ईद पर सबको गलें लगायें : डॉ० मुश्ताक़ अंसारी
सिर्फ़ क़ुरान मज़ीद ही हमें बेहतर ज़िंदगी जीना सिखाता है : मुफ़्ती सालिम क़ासमी
नई दिल्ली। फ़ेस इस्लामिक कल्चरल कम्यूनिटी इंटिग्रेशन (फिक्की) के सलाहकार एवं सफल बिजनसमैन प्रमुख समाजसेवी हाफ़िज़ सलीम अहमद पिछले क़रीब 40 वर्षों से तराबीह की नमाज़ में क़ुरान मजीद को मुकम्मल कर रहे हैं। इस वर्ष इन्होंने 21 दिन में क़ुरान मुकम्मल किया। इस मौक़े पर आराम पार्क इलाक़े में एक रूहानी महफ़िल आयोजित की गई जिसमें पवित्र क़ुरान की फ़ज़लियत पर रोशनी डाली गई और देश में अमन शांति व तरक़्क़ी के लिए दुआ भी की गई । फ़ेस ग्रुप के चेयरमैन डॉक्टर मुश्ताक़ अंसारी ने हाफ़िज सलीम अहमद का शॉल पहनाकर विशेष इस्तक़बाल किया।
इस मौक़े पर मौलवी हाफ़िज सालिम क़ासमी, मौलाना अब्दुल हलीम, कारी मुख़्तार अहमद, मुफ़्ती मोहम्मद अहमद, मुफ़्ती शाहबान, हाफ़िज़ शाहनवाज़, मोहम्मद तैयब आदि ने ख़ास मेहमान की हैसियत से शिरकत की और हाजी नसीम अहमद, हाजी मोहम्मद वसीम, हाजी दिलशाद अहमद, मोहम्मद यूसुफ़, इकराम हुसैन, हाजी अयूब अहमद, हाजी मोहम्मद जावेद, मोहम्मद अहमद अंसारी आदि भी विशेष अतिथि के रूप में मौजूद रहे।इस मौक़े पर इमाम मुफ़्ती सालिम हाशमी ने अपने ख्यालात का इज़हार करते हुए कहा कि अल्लाह को दो शख़्स बहुत पसंद हैं एक क़ुरान की तिलावत करने वाला और दूसरा ख़ैरात करने वाला। उन्होंने कहा कि हर मुसलमान को चाहिए कि वह क़ुरान सीखने व पढ़ने का मामूल अपनी ज़िंदगी में बना ले क्योंकि सिर्फ़ क़ुरान मजीद ही हमें बेहतर ज़िंदगी जीने का रास्ता दिखाता है। हाफ़िज सलीम अहमद ने कहा कि इस्लाम में क़ुरान का पढ़ना सबसे बेहतर कार्य है क्योंकि हर मुसलमान के लिए ज़रूरी है कि वह अपनी ज़िंदगी के सारे फ़ैसले क़ुरान मजीद की रोशनी में करे। उन्होंने रमज़ान माह के रोज़ों के ताल्लुक़ से अपने ख़्यालात का इज़हार करते हुए कहा कि रोज़ा जहाँ हमें ग़रीब की भूख प्यास का एहसास कराता है वहीं इस माह में हर अच्छे बुरे कार्यों का 70 गुणा पाप व पुण्य इंसान को मिलता है।इसलिए इस माह में ज़्यादा से ज़्यादा अच्छे कार्य करने चाहिए ताकि वर्ष के बाक़ी महीनों में भी अच्छे कर्म करने की आदत हो जाए। डॉक्टर मुश्ताक़ अंसारी ने कहा कि हफ़ीज़ सलीम अहमद समाज के लिए मिसाल हैं जो एक बड़े बिज़नेसमैन होते हुए भी मज़हब के कार्यों में पूरी रुचि लेते हैं। क़रीब 20 मुल्कों से इनका एक्सपोर्ट गारमेंट्स का कारोबार रहा है, परिवार व समाज की भी बहुत सी ज़िम्मेदारियों का यह निर्वाह करते हैं, इन सबके बावजूद तराबीह की नमाज़ में क़ुरान मजीद को पढ़ना सराहनीय कार्य है।समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं हाफ़िज सलीम जैसे लोग है । डॉक्टर अंसारी ने यह भी कहा कि देश में नफ़रत भरे मौजूदा हालात के मद्देनज़र मुस्लिम समुदाय को चाहिए कि ग़ैर मुस्लिमों के साथ इस्लामी अख़लाक़ पेश करें, भाई चारे का पैग़ाम जन जन तक पहुँचाएँ और ईद पर सबको गले लगायें ।
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