रोज़ा रखने से जरूरतमंदों की भूख -प्यास का हुआ एहसास

 रमज़ान मुबारक के महीने में अपनी ज़िंदगी का पहला रोज़ा रखने में बहुत ही मज़ा आया परिवार के सभी लोगों ने कुछ न कुछ तोहफ़े देकर हौसला बढ़ाया,जब सुबह तड़के सेहरी खाई तो मन में कुछ हलचल थी कि पूरा दिन बिना कुछ खाए , बिना कुछ पिए केसे गुज़रेगा मगर सभी बड़ों ने हिम्मत दिलाई, फिर दिन भर नमाज़ें पढ़ीं, क़ुरान पाक की तिलावत की ,कुछ खेल भी खेलें और फिर आखिरकार इफ्तारी का वक्त आ गया जिसमें मज़ेदार पकवान, फ़ल, शर्बत और मम्मी ने  मेरा फेवरेट ब्रेड रोल बनाया जिससे मेने अपने ज़िंदगी का पहला रोज़ा बहुत ही मज़े के साथ इफ्तार किया।

अपनी ज़िंदगी का पहला रोज़ा रखकर मुझे अहसास हुआ कि जिनको गरीबी या किसी और कारण समय पर खाना,पानी नहीं हासिल होता तो उनको केसा महसूस होता होगा, तो आज मुझे भी उनकी तकलीफ़ का बहुत अहसास हुआ और रोज़े रखने का एक बड़ा मकसद यह भी कि हमें अपने भाई -बहनों का गम का और ज़रूरतों का अहसास ज़रूर होना चाहिए फिर चाहे वो हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई या किसी भी धर्म का हो सबसे पहले वो अल्लाह का बनाया हुआ इन्सान है। इसलिए इस रोज़े से मेने जो सीखा इन्शाल्लाह अब पूरी ज़िंदगी उसपर चलकर इंसानियत की मदद करूंगा।

मुहम्मद अमश बेग पुत्र डॉo फ़हीम बेग 

उम्र 9 साल

कक्षा 5th बी केंद्रीय विधालय एजीसीआर कॉलोनी कड़कडूमा दिल्ली।

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