कितना मुश्किल होता होगा अपने हाथों से सीचें चमन को उजाड़ना
कितना मुश्किल होता होगा अपने चमन को अपने ही हाथों से उजाड़ना, तवह बर्बाद कर देना, वह भी उस चमन को जिसे खुद अपने हाथों से सींचा हो। कितना भयानक दिल दहला देने वाला होता है वह मंजर जब एक व्यक्ति अपने ही हाथों से अपने पूरे परिवार को खत्म कर देता है या फिर पूरा परिवार आत्महत्या कर लेता है। इस तरह की वारदातें सरकार व समाज के लिए बदनुमा धब्बा हैं और यह धब्बा बार-बार लग रहा है, बेरोजगारी व आर्थिक तंगी के कारण हत्या व सामुहिक आत्महत्याओं की वारदातें निरंतर बढ़ रही हैं।
देश में बढ़ती बेरोज़गारी के कारण तरह-तरह के अपराध बढ़ रहे हैं, कर्ज़ के कारण लोग विभिन्न प्रकार की बीमारियों व डिप्रेशन का शिकार हो रहहे हैं। जिसके चलते आत्महत्याओं की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है। जून-जुलाई महीने में यूं तो आत्महत्याओं की दिल्ली में कई खबरें प्रकाश में आईं लेकिन सीलमपुर इलाके की एक वारदात ने दिल दहलाकर रख दिया। जहां आर्थिक तंगी के कारण कर्जदारी बढ़ने पर एक व्यक्ति ने पहले अपनी 35 वर्षीय पत्नि तथा 11 व 9 वर्ष की दो बेटियों को गोली मारी और फिर खुद को गोली मारकर पूरे परिवार को खत्म कर लिया। यहां मैं दो बात रखना चाहूंगा कि पहली तो यह कि आत्महत्या करना कायरता है और परिवार के अन्य सदस्यों का क्या कसूर था जिनकी बिना वजह जान ले ली गई। मैं उन लोगों से भी सवाल करना चाहता हूं जिन्होंने उस आत्महत्या करने वाले व्यक्ति को कर्ज़ दिया। निःसंदेह कर्ज वापसी के लिए जरूरत से ज्यादा प्रेशर क़र्ज़ लेने वाले व्यक्ति पर बनाया होगा तभी वह इतना बड़ा और भयानक कदम उठाने के लिए मजबूर हुआ होगा। अब वह अपने कर्जे की वसूली किससे करेंगे ?
बेरोज़गारों को रोजगार मुहैया कराना सरकार की जिम्मेदारी है लेकिन हमारे प्रधान सेवक को राज्यों के चुनाव, मंदिर निर्माण, विदेश यात्रएं, हिन्दू-मुस्लिम आदि से ही फुरसत नही है। डॉलर के मुकाबले रूपया गिरता जा रहा है, और भाजपा नेता व अंधभक्त बोल रहे हैं कि देश तरक्की कर रहा है। कांग्रेस की मनमोहन सरकार के कार्यकाल वर्ष 2013 में जब डॉलर 65 रूपये का हुआ तो मोदी जी और भाजपा के तमाम नेताओं ने खूब शोर मचाया कि देश के व्यापारी विदेशों से कैसे व्यापार करेंगे, और अब डॉलर की कीमत 80 रूपये से ऊपर हो गई है लेकिन भाजपा के किसी नेता के मुंह से एक शब्द नही निकला। महंगाई विश्व स्तरीय समस्या है इस पर हमारी सरकारें कंट्रोल नही कर सकती, भाजपा की इस दलील को स्वीकार अगर कर भी लिया जाए तो रोज़गार का क्या ? रोजगार उपलब्ध कराना ना कराना तो हर देश का अपना निजी मामला है। लेकिन हमारी सरकार का इस ओर ध्यान नही है। सभी पार्टियों के नेता अपने-अपने स्तर पर देश को लूटते आए हैं। भाजपा कोई निराला काम नहीं कर रही है लेकिन अन्य सरकारों के कार्यकाल में व्यपारियों के मुंह से कभी यह नही सुना कि मार्केट में काम धंधा नही है। सरकारें यह बात क्यों भूल जाती हैं कि जनता को अगर रोजगार मिलेगा तो प्रदेश और देश तरक्की करेगा और देश अगर तरक्की करेगा तो उसका लाभ देश के प्रत्येक नागरिक को मिलेगा। सरकारों को चाहिए कि वह फिजूल खर्ची को कंट्रोल करके रोज़गार के अवसर मुहैया कराएं। औद्योगिक संस्थानों का निर्माण किया जाए।
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