विश्व पुस्तक मेला में हुआ अली अनवर की पुस्तक सम्पूर्ण दलित आंदोलन का लोकार्पण

 



पिछले दिनों नई दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित विश्व पुस्तक मेला में राजकमल प्रकाशन समूह के स्टॉल जलसांघर में कई विशेष कार्यक्रम आयोजित हुए। इसी दौरान मशहूर लेखक, पत्रकार एवं पूर्व सांसद अली अनवर की नई किताब सम्पूर्ण दलित आंदोलन का लोकार्पण हुआ। पसमांदा आंदोलन के लोकार्पण अवसर पर एक परिचर्चा भी आयोजित हुई, जिसमें योगेन्द्र यादव, हिलाल अहमद, रतन लाल और अशोक कुमार पाण्डेय बतौर वक्ता मौजूद रहे। 

इस मौक़े पर प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक माहेश्वरी ने कहा कि हम सबके लिए हर्ष की बात है कि राजकमल प्रकाशन अपनी 75 वर्षों की सफल यात्रा के बाद 76 वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। आज ही के दिन (28 फरवरी) हमारे लेखक विनोद कुमार शुक्ल को पेन/नोवोकोव पुरस्कार देने की घोषणा ने हमारी उस खुशी को दोगुना कर दिया है। 

हम आपको बता दें कि  सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता, पत्रकार और लेखक अली अनवर का जन्म 6 जनवरी, 1954 को बिहार के पुराने शाहाबाद जिले (अब बक्सर) के डुमराँव नगर में एक मजदूर परिवार में हुआ। 1967 में 'पढ़ाई नहीं तो फीस नहीं' शीर्षक से पर्चा छपवाने के कारण इनको राज हाईस्कूल, डुमराँव से निष्कासन कर दिया गया। तब आठवें : दर्जे के छात्र थे। यहीं से डुमराँव राज के सामन््ती धाक के खिलाफ छात्र आन्दोलन की रहनुमाई शुरू हुई। आगे चलकर वामपन्थी आन्दोलन से जुड़ गए। इसी दौर में 'जनशक्ति', 'ब्लिट्ज', 'रविवार' जैसे पत्र-पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन एवं भाषा (पीटीआई) के लिए संवाद संकलन का काम शुरू किया। घर की माली. हालत खराब होने के चलते कॉलेज की पढ़ाई बीच में छोड़कर 1974 में सरकारी नौकरी ज्वाइन कर ली। नौकरी करते हुए प्राइवेट तौर पर मगध विश्वविद्यालय से 1975 में बी.ए. की डिग्री हासिल की और वकालत की डिग्री हासिल करने के लिए महाराजा कॉलेज, आरा के इवनिंग लॉ कॉलेज में दाखिला लिया। एक साथ सियासत, सहाफत, नौकरी, पढ़ाई के चलते कई तरह की परेशानियों, मुकदमेबाजी और जेल यात्राओं के बीच लॉ की पढ़ाई छूट गई।  1984 में सरकारी नौकरी से इस्तीफा देकर 'जनशक्ति ', पटना के माध्यम से बाजाब्ते पत्रकारिता की शुरूआत की। ' जनशक्ति' के बन्दं हो जाने पर ' नवभारत टाइम्स, पटना, जनसत्ता ', दिल्ली तथा 'स्वतंत्र भारत', लखनऊ के लिए पत्रकारिता की। 1996  में पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रतिष्ठित के.के. बिरला फाउंडेशन फेलोशिप मिली। जिसका विषय था--बिहार के दलित मुसलमान। इस शोध-अध्ययन के नतीजे में. मसावात की जंग' किताब आई। यहीं से जीवन में एक नया मोड़ आया। 1998 में 'पसमान्दा मुस्लिम महाज', बिहार का गठन किया जो कुछ ही वर्षों में आॅल इंडिया पसमान्दा मुस्लिम महाज' के रूप में देश के विभिन्न राज्यों में फैल गया। : सितम्बर 2000 में श्रीमती राबड़ी देवी की बिहार सरकार द्वारा राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का सदस्य मनोनीत किया गया। 2006 में जनता दल (यू) के टिकट पर  राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए। 2012 में दोबारा राज्यसभा के लिए निर्विरोध निर्वाचित हुए। 2017 में जनता दल (यू) के अचानक एन.डी.ए. में शामिल होने का विरोध करने के कारण डबल इंजन की सरकार द्वारा राज्यसभा की सदस्यता समाप्त कर दी गई अब। हर तरह की साम्प्रदायिकता का विरोध करते हुए दलित पसमान्दा तबकों को पेशमान्दा बनाना जिंदगी का मिशन है।

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